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– डॉ. दिनेश चंद्र, जिलाधिकारी, बहराइच, उत्तर प्रदेश
एक कहावत है- यथा राजा तथा प्रजा। लोकतांत्रिक शब्दों में कहूं तो-यथा राजनेता तथा नौकरशाह। वाकई जनहित के प्रति संवेदनशील मुख्यमंत्री को पाकर उत्तरप्रदेश राज्य और उसके वासी धन्य हो चुके हैं। शासन के निर्देश के अनुरूप प्रशासन भी उनकी उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए अथक प्रयत्न कर रहा है। उल्लेखनीय है कि गत दिनों आई अप्रत्याशित बाढ़ के दृष्टिगत जनसामान्य के प्रति संवेदनशील मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा सभी बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों के जिलाधिकारियों को संवेदनशीलता के साथ बाढ़ राहत पहुंचाने के निर्देश दिए गए थे।
इसलिए मुख्यमंत्री के निर्देश के क्रम में शासनादेशों को संवेदनशीलता और मानवीय अनुभूतियों के साथ व्यवहारिक स्तर पर जिलाधिकारी व पुलिस अधीक्षक द्वारा लागू किया गया। जिससे प्रशासन के सभी अंगों को व्यवहारिक धरातल पर एक सम्बल प्राप्त हुआ।

इसी के क्रम में बहराइच जनपद के जिलाधिकारी के रूप में मैं और पुलिस अधीक्षक एक दूरस्थ क्षेत्र में पहुंच गए, जहां आवागमन बेहद जटिल था। गौरतलब है कि बहराइच जनपद के मिहीपुरवा/मोतीपुर तहसील के एक ग्राम अम्बा का मजरा भरथापुर है, जो एक दुर्गम स्थल है, जहाँ सामान्य दिनों में भी पहुंचना अत्यंत दुरूह है। ऐसे में बाढ़ के दिनों में इस स्थान की दुरूहता की मात्र कल्पना ही की जा सकती है। फिर भी एक जिलाधिकारी के रूप में यहां पहुंचकर मुझे कुछ अविस्मरणीय अनुभूति हुई, जिसे यहां अभिव्यक्त कर रहा हूँ।

ग्राम भरथापुर का अल्प प्रवास एवं बाढ़ पीड़ितों को राहत पहुंचाने की प्रक्रिया के क्रम में जो अकल्पनीय अनुभूति हुई है, उसको यदि लिपिबद्ध न किया जाए तो अनुचित होगा। क्योंकि ऐसा यात्रा वृतांत जो जीवन के दुर्लभतम क्षणों के बारे में बहुत कुछ सीख दे चुका हो, शायद ऐसे पल पुनः पुनः किसी के जीवन में नहीं आते हैं।

दरअसल, जनपद के मिहींपुरवा तहसील में राजनीतिक प्रतिद्वंदिता के परिणाम स्वरूप कई दिनों से एक प्रकार का नकारात्मकता का वातावरण मोतीपुर तहसील में बना हुआ था। वहां पर उप जिलाधिकारी को लक्ष्य कर पत्रकार एवं अन्य व्यक्ति एक तरह से सरकार की आलोचना कर उसे चुनौती दे रहे थे, यद्यपि जनपद बहराइच का कार्य सर्वोच्च एवं संवेदनात्मक स्तर से जुड़ा होने के कारण प्रत्येक दृष्टि में उत्कृष्ट था।
परंतु क्या कहें, दो व्यक्तियों के अहं की टकराहट ने प्रशासन को नीचा दिखाने, छोटा करने की कोशिश की। चूंकि हमारा कार्य अच्छा था, इसलिए हमने इसका प्रतिवाद किया। इसी कड़ी में मैंने स्वयं निर्णय लिया कि मैं उस ग्राम में राहत सामग्री वितरण करूंगा जहां पहुंचना न केवल दुरुह एवं दुर्गम है, अपितु अपनी भौगोलिक एवं रमणीक प्राकृतिक छँटा के लिए आकर्षण का केंद्र बिंदु भी है।
इसलिए गत 19 अक्टूबर 2022 को मैंने पूरे दलबल के साथ मुख्यमंत्री जी की प्रेरणा एवं उनके निर्देशन में उत्कृष्ट कार्य करने के भाव के साथ भरथापुर जाने का निर्णय लिया। मसलन कार्य की दुरुहता एवं मार्ग अत्यंत कंटकाकीर्ण तो नहीं परंतु दलदली नदियों की दो-तीन धाराओं को पार करने के मद्देनजर दुर्गम लगा। वहां पहुंचने का रास्ता पानी घटने के कारण दलदली मिट्टी के रूप में परिणत था।
वहीं, विभिन्न खतरनाक एवं वन्यजीवों, यथा- शेर, चीता, हाथी, सर्प, मगरमच्छ, नाके, डॉल्फिन मछली एवं अन्य छोटे जीव जंतुओं के कारण आकर्षण एवं भयानकता दोनों के भाव (मन का वातावरण) को एक साथ समेटे हुए था। इसलिए अकेले जाने का निर्णय तो मूर्खतापूर्ण एवं सुरक्षा कारणों से भी कठिन था।
गोया दो-तीन किलोमीटर की जंगली घास के बीच छोटी पगडंडी, वह भी कहीं कीचड़ एवं पानी से भरी तो कहीं दलदली मिट्टी के कारण, घने वन के कारण नंगे पैर के अतिरिक्त यात्रा का अन्य कोई विकल्प उपलब्ध नहीं था। इसलिए वहां जाना मात्र पैदल और नंगे पैर ही संभव था। इसलिए सभी ने अपने को तैयार किया।
सभी सामूहिक रूप से एक साथ आगे बढ़े जा रहे थे, इसलिए भय भी नहीं था। परंतु दलदल के कारण आसन्न खतरा बना रहता था। इससे जुड़ी अपनी अनुभूतिजन्य अभिव्यक्ति को और स्पष्ट करते हुए हमने अपनी यात्रा, जो उद्देश्यपूर्ण एवं गरीब-पीड़ित अभावग्रस्त भरथापुर के नागरिकों एवं बच्चों के जीवन में दीपावली के पर्व पर खुशियों के ऐसे पल देने के लिए प्रयासरत थी, जिसमें भीषण बाढ़ ने फसलों को काफी अधिक क्षति पहुंचाई और 1 सप्ताह से अधिक समय तक यहां के व्यक्तियों का जीवन काफी कठिन हो गया था।
परंतु ईश्वर की कृपा और प्रशासन के प्रयास से जनहानि एवं पशुहानि नगण्य या कहूं कि शून्य के बराबर रही है। यह सरकारी तंत्र की समय से बचाव एवं राहत की उत्कृष्ट प्रबंध व्यवस्था का उत्कृष्ट नमूना माननीय योगी जी, मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश सरकार के उत्कृष्ट नेतृत्व के परिणाम स्वरुप रहा।
उस दुर्गम यात्रा में 3 से 4 किलोमीटर की पैदल नंगे पांव यात्रा में पानी था, बालू था और दलदली कीचड़ का मार्ग था, तथा राहत किट को नदी किनारे पहुंचाने के लिए साइकिल का प्रयोग भी किया जा रहा था। गेरूआ नदी पर नाव में बैठने के दौरान मेरी नजर भी सामान लाती साइकिल पर पड़ी।
स्वाभाविक रूप से मन में बच्चों जैसी भावना जागृत हुई और मैंने भी साइकिल से सामान उठाने के प्रयास में कुछ क्षण नदी की रेतीली एवं दलदल युक्त भूमि के उथले स्तर पर साइकिल चलाई। वह फोटो भी कौतूहल वश एवं अन्य कारणों से जनता एवं जनमानस का आकर्षण का केंद्र रहा। परंतु मैं स्पष्ट करना चाहूंगा कि मेरे दोनों दिवसों पर अर्थात 19 अक्टूबर और 20 अक्टूबर 2022 की यात्रा दुरूह एवं कठिन होने के साथ नंगे पैर पैदल यात्रा ही थी और नदी को नाव से पार किया।
साहसी, योद्धा एवं कर्मठ ग्राम वासियों एवं नाविकों के सहारे उसी समय मुझे याद आया- राम एवं केवट संवाद। जहां नाविकों ने अपने अधिकारियों एवं विशेष रूप से मुझे एवं एसएसपी साहब को उसी मनोभाव एवं आदर से नाव से दोनों दिन यात्रा कराई। दूसरे दिन तो रात्रि थी, अंधकार था परंतु नाविकों/मल्लाहों का हौसला एवं ऊर्जा अकथनीय एवं अनिर्वाचनीय था।
उनके भाव एवं हृदय में उठी प्रेम की उमंग ने मेरे मन को अंतर्मन तक गहरी मीठी यादों एवं अकथनीय आत्मीय प्रेम की भावना से सराबोर कर दिया। अतः जो आंखों देखा होता है, वह भी उतना सत्य के समीप नहीं होता, जितना अनुभूतिजन्य सत्य होता है।
इस मार्मिक यात्रा ने मुझे ऐसे अनुभवों से अभिसिंचित किया, जो गरीब एवं दक्ष मल्लाह जाति के व्यक्ति ही अपनी जान जोखिम में लगाकर बाढ़ की विपत्ति के समय न जानें कितने नागरिकों के जीवन को देश-प्रदेश के बाढ़ पीड़ित क्षेत्रों में सुरक्षित बचाते हैं और उनका साथ देती है हमारी पुलिस एवं पैरामिलिट्री की सशस्त्र पुलिस बल, जैसा कि यहां भी एस.एस.बी. के सहयोग बिना कुशलतापूर्वक वापस आना संभव नहीं था।
परंतु एस.एस.बी एक प्रशिक्षित पुलिस बल है और उनके पास ज्ञान एवं प्रशिक्षण का अनुभव है, परंतु ग्रामीणों के पास अनुभव, हौसले एवं दुर्गमता में सुगमता के वातावरण को सृजित करने की ऊर्जा एवं शक्ति है। इसलिए उनका योगदान यात्रा में एसएसबी से कम नहीं है, अपितु मेरी अनुभूति में कई गुना ज्यादा है।
इसी प्रकार वन विभाग एवं पुलिस विभाग अथवा अन्य विभाग का प्रश्न है, आपदा प्रबंधन अधिनियम 2006 के अंतर्गत उनका यह पदेन दायित्व है कि बाढ़ क्षेत्र में राहत एवं बचाव के कार्य को सर्वोच्च प्राथमिकता दें।
मैं इस यात्रा को स्मरणीय सार्थक एवं उद्देश्यपूर्ण बनाने के लिए केशव कुमार चौधरी, एसएसपी; आकाश वधावन, डीएफओ; ज्ञान प्रकाश त्रिपाठी, एसडीएम; रविंद्र कुशवाहा, वीडीयो एवं समस्त विभागीय अधिकारियों और कर्मचारियों का विशेष रूप से सम्बन्धित नायाब तहसीलदार, लेखपाल, ग्राम पंचायत अधिकारी एवं अनेकों ऐसे व्यक्तियों का हृदय की गहराइयों से आभारी हूं जिन्होंने मेरी सुरक्षा की एवं यात्रा को मानव उपयोगी तथा उद्देश्य परक बनाकर उत्तर प्रदेश की छवि को उत्कृष्ट बनाया।
वहीं, 23 अक्टूबर 2022 को पुनः उसी ग्राम में जिला कार्यक्रम विभाग की टीम ठीक दीपावली के दिन ड्राई राशन का वितरण कर वहां ग्रामीणों को एक लोक कल्याणकारी सरकार का एहसास कराया। साथ ही मेरे द्वारा कठोर शब्दों में दिए गए निर्देशों की अनुपालना कर अपने को निलंबित होने से भी बचाया।
सच कहूं तो इन परिस्थितियों में राहत किट ग्राम में पहुंचाना कितना कठिन था, वह मैं वर्णन करूं तो रूह कांप जाती है। किसी तरह से पैदल ही राहत किटों को गरुआ नदी की दलदली धारा तक ले जाना और फिर ग्रामीणों के सहारे नाव में भरकर एसएसबी की चौकी पर भरथापुर के घने/सघन जंगल के पास नदी के किनारे किनारे तक ले जाना इतना कठिन था कि 70 किट 10 घंटों में पहुंचाई गई तथा 50 किट नदी एवं दलदल भरे धार पर गेरुआ नदी के किनारे साधन के अभाव में पड़ी रही। उनको 20.10.2022 को पुनः नावों में भरकर ले जाया गया।
इस दुर्गम यात्रा में मैं स्वयं और एसएसपी एवं अन्य अधिकारी नंगे पैर राहत पहुंचाने हेतु निकले। मैं यहां उल्लेख करना चाहूंगा कि यह समस्त कार्य राजस्व विभाग का है परंतु स्थान की दुर्गमता के कारण आपदा प्रबंधन अधिनियम 2006 में दी गई व्यवस्था के अंतर्गत मैंने सहयोगी विभागों- ग्राम्य विकास, पुलिस, वन विभाग, नेपाल सीमा पर तैनात एसएसबी एवं ग्रामीणों का सहारा लिया।
वैसे तो नंगे पैर चलते जाने में आनंद का अतिरेक भी आ रहा था। क्योंकि शायद 30-35 वर्षों के बाद इतनी लंबी यात्रा नंगे पैर, वो भी कीचड़ भरे दलदली भूमि वाले रास्ते में की है। मुझे स्मरण नहीं कि एसएसबी की मोटर बोट खराब थी, और केवल मैनुअल नाव ही गेरुआ नदी की धारा पार करने का माध्यम थी। इसलिए सभी सुरक्षाबलों एवं अन्य विभागीय अधिकारियों को नदी किनारे रोका गया। केवल नाव की क्षमता के अनुरूप एवं आवश्यक खाद्यान्न विशेष रूप से पारले जी के बिस्कुट के डिब्बों के साथ आगे बढ़ने का निर्णय लिया गया।
खास बात यह कि नंगे पैर पैदल दो-तीन किलोमीटर की यात्रा सुखद रूप से पूर्ण करके बिस्कुट के डिब्बों को हाथ में लेकर मैं नाव में बैठने ही जा रहा था कि नदी की दलदली मिट्टी में मेरा दाहिना पैर पूर्ण रूप से जांघ तक दलदल में घुस गया। इससे सभी लोग चिंतित होकर मुझे निकालने लगे, जबकि मैं आश्वस्त था कि कहीं कोई खतरा या अप्रिय घटना नहीं होगी। गोया, ग्रामवासियों के बचाव से एवं स्वयं के हौसले से मैं बिस्कुट के पैकेट को पकड़े हुए ही दलदल से बाहर आया और नाव में बैठकर राहत पहुंचाने के लिए एकत्र ग्रामीणों के बीच पहुंचा। वहां पर उनकी पीड़ा को सुना एवं राहत सामग्री व बिस्कुट बांटे। परंतु मन खुश नहीं था क्योंकि आधे लोग राहत किट से वंचित रह गए थे।
इसलिए मैंने एसडीएम को 20.10.2022 को पुनः सुरक्षा कवच के साथ राहत बांटने के लिए आदेशित किया।

इस प्रकार से 19.10.2022 की यात्रा पूर्ण हुई। घर आए परंतु दलदल में फंसे पैर की वीडियो एवं दुर्गम स्थान पर जाने के प्रयास को जनता ने खुले दिल से सराहा। मन द्रवित हुआ और उत्कृष्ट कार्य करने की प्रेरणा मिली।
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने लिखा है-
” दिशा दीप्त हो उठी प्राप्त कर, पुण्य प्रकाश तुम्हारा।
लिखा जा चुका है, अनिल अक्षरों में इतिहास तुम्हारा।।
जिस मिट्टी ने लहू पिया, वह फूल खिलाएगी ही।
अंबर पर घन बन, छाएगा ही उच्छवास तुम्हारा।।
और अधिक ले जाएं, देवता इतना क्रूर नहीं है।
थक कर बैठ गए क्या भाई! मंजिल दूर नहीं है।।”
वाकई, दलदल में फंसे नंगे पैर और संघर्ष-ए-साहस से परिपूर्ण ओजस्वी चेहरे के साथ नाव में बैठना जनमानस को अच्छा लगा और उपरोक्त कविता की पंक्तियों से मेरे मन को न केवल प्रभावित किया, अपितु गरीबों की सहायता के लिए मेरे प्रयास को इस स्तर पर मिली ख्याति ने मुझे अंदर से द्रवित कर भावशून्य बना दिया। फिर मैंने निश्चय लिया कि राहत के इस कार्य को अंतिम मुकाम तक पहुंचाऊंगा।
वहीं, 20 अक्टूबर 2022 को पुनः दल बल के साथ राहत पहुंचाई और ग्रामीणों को राहत किट एवं दीपावली की शुभकामनाओं एवं गिफ्ट से भी संतृप्त किया।
देखा जाए तो यह रास्ता इतना दुर्गम था कि जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक द्वारा अपने अपने वाहन स्थल से पर्याप्त दूरी पर छोड़ दिये गए। कीचड़ व पानी युक्त रास्ता होने के कारण दोनों अधिकारी पैरों में बिना कुछ पहने चल दिए। कुछ दूरी के पश्चात नाव का सहारा लिया। यहां नाव पर चढ़ना भी किसी बड़े साहसपूर्ण कार्य से कम नहीं था, क्योंकि नाव के पास की भूमि दलदली थी।
जिलाधिकारी डॉ दिनेश चंद्र और पुलिस अधीक्षक केशव चौधरी स्वयं हाथों में बाढ़ राहत सामग्री पकड़ कर नाव की तरफ चले ही थे कि अचानक जिलाधिकारी का एक पैर घुटने से ऊपर तक दलदल में चला जाता है, पर उस समय भी उन्होंने अपने हाथों से राहत सामग्री नहीं छोड़ी। इससे पूर्व का मार्ग खरपतवार और जंगली प्राणियों से भरा हुआ था जिस पर पैदल चलकर ही सामग्री को नाव तक पहुंचाया गया।
मसलन, नाव की यात्रा लगभग 15 मिनट की रही जिसमें जिलाधिकारी द्वारा एक गीत की पंक्तियां गुनगुनाई गयी कि “कौन कहता है कि भगवान आते नहीं।” इसका अर्थ बताया कि हर व्यक्ति में भगवान हैं, इसलिए दुःखी और पीड़ितों को भगवान समझ कर आपको उनकी सेवा करनी चाहिए। उसके पश्चात उनके द्वारा बच्चों महिलाओं, वृद्ध जनों आदि सभी पीड़ितों को सामग्री वितरित की गई।
वहीं, लौटते समय जिलाधिकारी द्वारा इस राहत यात्रा की स्मृति के रूप में गेरुआ नदी के किनारे पड़े कुछ पत्थरों को उठा कर लाया गया। कहना न होगा कि जिस प्रकार जिलाधिकारी व पुलिस अधीक्षक द्वारा मुख्यमंत्री जी से ऊर्जा प्राप्त कर जनहित के कार्य पूर्ण संवेदनशीलता के कार्य किये जा रहे हैं, उसी प्रकार जिला प्रशासन के सभी अंग ऊर्जा प्राप्त कर उत्साह के साथ बाढ़ राहत में लगे हुए हैं।
उल्लेखनीय है कि 20.10.2022 की यात्रा 19 अक्टूबर 2022 से कहीं अधिक जोखिम भरी एवं सार्थक रही, जिसके बारे में आगे लिखूँगा। जोखिम भरी यात्रा एवं राहत किट के वितरण में ग्रामीणों के सहयोग का बहुत बड़ा योगदान है। यदि मैं सत्य कहूं तो यह कहूंगा कि बिना ग्रामीणों के सहयोग से राहत सामग्री का वितरण एवं यात्रा करना संभव नहीं था। इसके लिए मैं ग्रामीणों का आभारी हूं, कृतज्ञ हूं।
सच कहूँ तो कौन, किसको क्या दे सकता है, यह हमारा भ्रम है। हम माध्यम हैं राहत सामग्री पहुंचाने के, क्योंकि जिस दलदली एवं भयावह परिस्थितियों के सहयोग से भरथापुर की गेरुआ नदी की यात्रा की है, वह अपनी कतिपय विडंबनाओं की सदैव याद दिलाती रहेगी। आपके कार्य से आपको चाहने वाले, स्मरण करने वाले एवं सहयोग देने वाले ऐसे व्यक्ति मिल जाएंगे, जिनसे आपका कभी किसी प्रकार का परिचय या वास्ता नहीं रहा है।
अतः यह कहना समीचीन ही नहीं सार्थक भी है कि-
“आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, यदि मिलते हैं रोज-रोज एक ही से लोगों से, और नहीं मिलते नहीं रोज-रोज अजनबियों और अनजानों से।” मेरी इस कभी न भूलने वाली यात्रा ने मुझे एहसास कराया कि परिस्थितियों के अनुरूप व्यक्ति शक्तिशाली होता है और विजयी बनता है। मेरी इस सुखद यात्रा में ग्रामीणों की सहयोगी भूमिका सदैव मेरे जीवन की अमूल्य निधि एवं धरोहर बनी रहेगी।