लोकसभा चुनाव 2024 : UP में बड़का बनने के फिराक में अखिलेश!

शक्ति प्रकाश श्रीवास्तव
लोकसभा चुनाव की तैयारियां लगभग सभी राजनीतिक दलों ने शुरू कर दी है। एनडीए को टक्कर देने के लिए विपक्षी गठबंधन आईएनडीआईए भी पूरी ताकत के साथ चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी कर रही है। देश में सबसे अधिक 80 लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में विपक्षी दलों के इस गठबंधन की तैयारी कुछ अलग हैं। हालांकि अभी तक यह तैयारी यहाँ कागजों पर ही होती दिख रही है। अलबत्ता सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव का रवैया कुछ अलग लग रहा है। वो प्रदेश से बाहर अन्य राज्यों के विधानसभा चुनावों मे तो गठबंधन का हिस्सा होने के नाते अपने लिए सीटों की मांग कर रहे है। लेकिन उत्तर प्रदेश मे वो अपनी भूमिका अलग बनाना चाहते हैं। वो चाहते हैं कि देश भर में भले ही गठबंधन की अगुवाई कांग्रेस कर रही है लेकिन यहाँ के लिए वो उसकी भूमिका में रहे।
राज्यों में चुनाव की घोषणा हो चुकी है। भारतीय जनता पार्टी उम्मीदवारों के नाम का ऐलान कर रही है, लेकिन विपक्षी गठबंधन का स्वरूप चुनावी राज्यों में क्या होगा? यह अभी तक सामने नहीं आ पाया है। दरअसल, इस साल नवंबर- दिसंबर में पांच राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना और मेघालय में विधानसभा चुनाव होने हैं। इन चुनाव वाले अधिकांश राज्यों में सीधा मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही है। लेकिन विपक्षी गठबंधन के इलाकाई सहयोगी कांग्रेस से चुनावी राज्यों में अपने अपनी हिस्सेदारी की मांग कर रहे हैं। कांग्रेस इन जगहों पर इन सहयोगियों को सीट देने के मामले में अभी तक अपना रुख स्पष्ट नहीं कर पा रही है। ऐसे में सबसे अधिक पेंचीदा मामला उत्तर प्रदेश में बनता जा रहा है। क्योंकि यहाँ उसका बंटवारा समाजवादी पार्टी के साथ होना है। जबकि समाजवादी पार्टी सुप्रीमो अखिलेश यादव ने पहले ही कहा था कि उत्तर प्रदेश में हम विपक्षी गठबंधन के तहत सीट सहयोगियों को देंगे। वहीं, अन्य राज्यों में होने वाले चुनाव में हम सीनियर दलों से सीट लेने की कोशिश करेंगे। ऐसा कह कर एक प्रकार से अखिलेश यादव ने विपक्षी गठबंधन आईएनडीआईए में खुद की भूमिका खुद ही तय कर ली है। वो उत्तर प्रदेश में अपने को गठबंधन के बड़े भाई की भूमिका में देखना चाहते हैं। जिस भूमिका का निर्वहन अन्य राज्यों में कांग्रेस कर रही है। अखिलेश की स्पष्ट मंशा है कि यहाँ वो अपने गठबंधन के सहयोगी दलों को अपने मनमर्जी हिस्सेदारी तय करें। इसमें किसी का दखल न हो।
इस बार के लोकसभा चुनाव में स्थितियाँ पिछले चुनावों की तुलना में भिन्न है। उत्तर प्रदेश के संदर्भ में देखें तो पिछले चुनाव में बीजेपी अपने सहयोगी अपना दल एस के साथ चुनाव मैदान में थी। 78 पर बीजेपी और 2 पर अपना दल चुनाव लड़ी थी जिनमे 62 पर बीजेपी और 2 पर अपना दल को विजय मिली थी। इस बार बीजेपी गठबंधन में निषाद पार्टी और सुभासपा भी शामिल है। यहाँ बीजेपी का मैनेजमेंट देखना होगा कि वो इन्हें कैसे साधती है। वही विपक्ष में पिछली बार 26 वर्षों के बाद सपा और बसपा मिलकर चुनाव लड़े थे। लेकिन इस बार वो अपना पिछला यानि 1993 वाला करिश्मा नहीं दोहरा सके। बसपा को 10 और सपा को महज 5 सीटों पर संतोष करना पड़ा था। अन्य राज्यों में प्रमुख विपक्षी की भूमिका में रहने वाली कांग्रेस की हालत भी यहाँ पतली थी। उसे महज 1 सीट ही मिल पाई थी।
ऐसे में यह तो तय है कि यहाँ अखिलेश की भूमिका कांग्रेस की अपेक्षा मजबूत है। लेकिन ऐसे में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय का सभी 80 सीटों पर चुनावी तैयारी करने के ऐलान से यह तो लग रहा है कि कांग्रेस भी 20-25 सीटों से कम पर मानने वाली नहीं है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि अखिलेश अपने सहयोगियों को किस प्रकार संतुष्ट करते हैं। हालांकि सपा अपने पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक यानि पीडीए फ्रंट के जरिए सामाजिक समीकरण को साधकर 55 से 60 फीसदी वोट शेयर पर अपनी दावेदारी जताते हुए अपनी भूमिका का एहसास कराना शुरू कर दिया है।

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